सीहोर(गौतम शाह) क्यों इछावर आने से डरते है सी एम शिवराज सिंह चौहान

इछावर एक मिथक सीहोर (गौतम शाह) 5 मुख्यमंत्री इछावर आकर गवा चुके है कुर्सी कैलाश नाथ काटजू ,द्वारका प्रशाद मिश्र कैलाश जोशी वीरेन्द्र कुमार सखलेचा ओर दिग्विजय सिंह गवा चुके है अपनी कुर्सी सीहोर जिले की इछावर तहसील की नगर सीमा के बारे एक मिथक जोरो से प्रचलित है कि यहां की नगर सीमा में जो भी मुख्यमंत्री आता है उसे अपनी कुर्सी गवाना पड़ती है ऐसा नहीं है कि देश में अनपढ़ या कोई निश्चित वर्ग की अंधविश्वास की चपेट में हो, यहां तो तकरीबन हर तबके का एक धडा हमेशा ही अंधविश्वास की डोरी से जुड़ा रहता है। जी हां, क्या आप जानते हैं कि देश में भी कई जगह ऐसी हैं, जहां बड़े से बड़ा राजनैतिज्ञ केवल इसलिए नहीं जाता क्योकि वहां से एक मिथक जुड़ा हुआ है। मध्यप्रदेश में भी ऐसी एक जगह हैं जिनसे एक अजीब सा अंधविश्वास जुड़ा हुआ है। जिसे कोई भी सीएम तक तोड़ता हुआ नहीं दिखता। इस जगह के संबंध में कहा जाता है कि जब भी कोई सीएम यहां आता है तो उसकी कुर्सी चली जाती है। जी हां हम बात कर रहे है मध्यप्रदेश के सीहोर जिले की इछावर तहसील की। यहां के इस मिथक को अब तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी नहीं तोड़ पा रहे हैं। इछावर के इस मिथक को तोड़ने का प्रयास तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 15 नवंबर, 2003 को किया था। वे इछावर में आयोजित सहकारी सम्मेलन में शामिल हुए थे। उन्होंने अपने भाषण में कहा था- मैं मुख्यमंत्री के रूप में इछावर के इस मिथक को तोड़ने आया हूं। इसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई और मिथक बरकरार रहा। इन मुख्यमंत्रियों को गंवानी पड़ी कुर्सी 12 जनवरी 1962 को तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. कैलाश नाथ काटजू विधानसभा चुनाव के एक कार्यक्रम में भाग लेने इछावर आए। इसके बाद 11 मार्च 1962 को हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। मुख्यमंत्री होने के बाद भी वे जावरा विधानसभा सीट से चुनाव हार गए, उन्हें डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडे ने पराजित किया था। 1 मार्च 1967 को पं. द्वारका प्रसाद मिश्र यहां आए। सात मार्च को नए मंत्रिमंडल के गठन से उपजे असंतोष के चलते कांग्रेस में विभाजन हुआ और मिश्र को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा। 12 मार्च 1977 को कैलाश जोशी एक कार्यक्रम में भाग लेने यहां आए, लेकिन 29 जुलाई को उन्हें पद से हटना पड़ा। 6 फरवरी 1979 को वीरेंद्र कुमार सकलेचा तालाब का लोकार्पण करने आए। उन्हें 19 जनवरी 1980 को पार्टी के अंदरूनी कारणों की वजह से त्यागपत्र देना पड़ा। इस बारे में जोयतिष की माने तो दो मुख्य कारण सामने आते है पहला कारण अंक जोयतिष है जो कि इछावर का अंक 4 बताता है जो कि राहु का अंक है दूसरा कारण इछावर के चारो कोनो पर शमसान का होना जोयतिष के अनुसार ये 2 कारण है जो कि प्रदेश के मुखिया पर भारी पड़ते है जिनके चलेते प्रदेश के मुखिया यदि इछावर की धरती पर कदम रखते है हो उनकी सत्ता चली जाती है

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